Tuesday, May 23, 2017

इस शख्श को बयान करू कैसे,

इस शख्श को बयान करू कैसे,
उसे कभी सोते देखा ना कभी जागते
वो तो चलता गया चलता गया चलता......
न रुका वो कभी, न थका वो कभी,
न दिखा वो किसी को, न देखा किसी को
धुन का रामी, गुण का धनि
आया वो सुक्ष्म,
कर गया नुक्लियर सभी को
न जानता वो किसी को
न जानने देता कभी
कहता बस इतना कि
"रुको मत, चलते चलो,
मंजिल तक पहुँच कर
दूसरी मंजिल कि तलाश ही जीवन है कि
रुको मत... रुको मत... रुको मत...



सौरभ कि कलम से...

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