Monday, December 18, 2017

उड़ान...

उड़ान...
आज फ़िर मन ने कहा, "चलो कुछ नया किया जाये। ऐसा कुछ जो पहले ना कभी किया ना कभी सोचा।"
तब लगा मैन मचलने, उछलने, नए ख़्वाबों की ऊँची उड़ाने लगा भरने। तब उड़ान और ऊँची और भी ऊंची होती गई। मानो ना किसी की तलाश, ना कोई आशा... लग रहा मानो ख़ुद को पंछी सा पंख पसारे, बिचारों की उड़ाने भरने को आतुर, फिर एक परिन्दा अपने जीवन की शुरुआत करने को आतुर...
सौरभ की कलम से...

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