Thursday, May 10, 2018

|| ये खामोश दीवारें ||

|| ये खामोश दीवारें ||

|| ये खामोश दीवारें ||


|| चुप खामोश दीवारें, कह रहीं न जाने कुछ...

अपने में समाहित, कई खामोश कहानियां || 

चुप सी रहती, सहती, न कहती कुछ...||


|| सोचा चलो यूँ ही दीवारों से दोस्ती की जाये।

कुछ अपनी तो कुछ पराई यादें ही ताज़ा की जाये || 

आखिर ये भी तो चाहती कुछ कहना, सुनना किसी से...


तो यूँ ही बैठ गया और लगा गुफ्तगू करने...

यक़ीन मानें जो परत-दर-परत खुलती गयी दीवारें...


अपनों का अपनों से संवाद जो परवान पर था

दू_________री अब नज़दीकियों में तब्दील हुई प्रतीत होती ...


ऐसा मिलान संयोगवश बरसों बाद हुआ |

मानों सपरिवार मिलान समारोह का आयोजन हुआ ||


था सबकुछ काल्पनिक |

परन्तु कल्पना से परे ||


अपनों का अपनों से मिलान ...

एक अलग ही रसानुभूति करा गया || 


|| ये खामोश दीवारें ||










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